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सौ फीसदी अंक, क्या देते है नौकरी की गरंटी?

facebook, twitter, सौ फीसदी अंक, क्या देते है नौकरी की गरंटी?  रोशनी आज बहुत खुश है और थोड़ी बेचैन भी क्योकि कल उसका प्रतियोगी परीक्षा का परिणाम आने वाला है। कल उस सपने का सकार  होने का दिन है जो सपना उसके माता - पिता ने उसके पैदा होने से पहले से देखते आ रहे है। उसके पैदा होने के बाद उस सपने को रोशनी की जिंदगी का लक्ष्य बना दिया गया। कुरूक्षेत्र में एक योद्धा की तरह रोशनी भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सर्वश्व न्यौछावर कर चुकी है। वो बचपन से लेकर आज तक सभी परीक्षाओं में प्रथम आई है। इस सरकारी नौकरी की परीक्षा को पास करने के लिए वो पिछले दो साल से तैयारी कर रही है। जो लड़की हर काम हमेशा अपने समय से करती थी, आज उसे नींद नहीं आ रही है। कल क्या परिणाम आयेगा इसी उधेड़बुन में सुबह हो गयी। घड़ी की सुई परिणाम के आने का इशारा कर रही थी। परिणाम देखकर उसे विश्वास नहीं हो रहा कि उसके पूरे सौ फीसदी अंक आये है। दो महीने बाद अंतिम चयन सूची घोषित हुई तो उसका नाम नहीं था। सामान्य श्रेणी का उम्मीदवार किसी नौकरी के लिए लिखित परीक्षा में सौ फीसदी अंक प्राप्त करता है तो भी इस बात की गरंटी नहीं है...

भारत में हाइपरलूप तकनीक की उपयोगिता

भारत में हाइपरलूप तकनीक की उपयोगिता हाइपरलूप क्या है? हाइपरलूप वाहनों का विचार परिवहन के पांचवें विकल्प के तौर पर सामने आया है। हाइपरलूप वैक्यूम  ट्यूब के अंदर वाहन चलाने की अवधारणा है। जिसमें हवा और अन्य प्रतिरोध कम होने के चलते वाहन को कम उर्जा में तीव्रतम गति से चलाया जा सकता है। पूरी दुनिया में लोग इस त्वरित और ज्यादा सुरक्षित परिवहन को व्यावहारिक बनाने में काम कर रहे ंहै।  आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ते कदम   IIT Madras के Centre for Innovation के  'AVISHKAR'  हाइपरलूप टीम इस दिशा अग्रणी कही जा सकती है।  'AVISHKAR' एकमात्र एशियाई टीम है जो भारत में स्वचलित हाइपरलूप पॉड के स्वदेशी डिजाइन और विकास पर काम कर रही है। इस टीम ने 2019 में अंतरराष्ट्रीय स्पेसएक्स हाइपरलूप पॉड प्रतियोगिता में फाइनल में पहुंची थी। 19 जुलाई से शुरू हुई यूरोपियन हाइपरलूप वीक में टीम  'AVISHKAR' हाइपरलूप भाग ले रही है। इस प्रतियोगिता के लिए 40 छात्रों की टीम ने कोरोना महामारी के दौरान नवीन प्रोटाेटाइप हाइपरलूप पॉड विकसित किया है। यह पॉड चेन्नई से बेंगलूरु की दूरी मा...

सावन मास का महत्व

सावन मास का महत्व सावन मास भगवान शिव को समर्पित हैं। इस पवित्र महीने में भोले बाबा के भक्त उन्हे प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा अर्चना करते है। सावन मास को सर्वोत्त्म मास भी कहते है। सावन सोमवार व्रत का सर्वाधिक महत्व है। श्रावस मास भगवान भोलेनाथ को सबसे प्रिय है। इस माह में सोमवार का व्रत और सावन स्नान की परंपरा है। श्रावण मास में बेलपत्र से भगवान भोलेनाथ की पूजा करना और उन्हें जल चढ़ाना अति फलदायी माना गया है। जल अभिशेष का सावन मास में विशेष   महत्व   जब   समुद्र मंथन आरम्भ हुआ और भगवान कच्छप के एक लाख   योजन   चौड़ी पीठ पर मन्दराचल पर्वत घूमने लगा। तब समुद्र मंथन से सबसे पहले हलाहल विष निकला। उस विष की ज्वाला से सभी देवता तथा दैत्य जलने लगे और उनकी कान्ति फीकी पड़ने लगी। इस पर सभी ने मिलकर भगवान शंकर की प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना पर   महादेव   जी उस विष को हथेली पर रख कर उसे पी गये किन्तु उसे कण्ठ से नीचे नहीं उतरने दिया। उस   कालकूट   विष के प्रभाव से शिवजी का कण्ठ नीला पड़ गया। इसीलिये महादेव जी को   नीलकण्ठ   कहते हैं। उ...

भारतीय आयुर्विज्ञान काढ़े तक ही सीमित है?

facebook, google+ भारतीय आयुर्विज्ञान काढ़े तक ही सीमित है ? कोविड महामारी को 1 साल से अधिक समय हो गया है और ये भी स्पष्ट हो चुका है कि कोविड विषाणु देश काल के अनुसार अपनी संरचना बदलते हुए मारक बना हुआ है। इसके नियंत्रण के लिए देश काल के अनुसार प्रोटोकाॅल की जरूरत है। कोरोना संक्रमण के तेज फैलाव और इसके वैश्विक महामारी बनने के पीछे आवागमन के साधनों का विकास जिसके कारण पूरा विश्व एक प्रांत की तरह होना भी है। आयुर्वेद शब्द ( आयु : + वेद ) से मिलकर बना है जिसका अर्थ है जीवन से संबंधित ज्ञान। आयुर्विज्ञान मानव शरीर को निरोग रखने , रोग हो जाने पर रोग से मुक्त   करने तथा आयु बढ़ाने वाला है। आयुर्वेद के आदि आचार्य अश्विनी कुमार माने जाते है। धनवंतरी जयंती या धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया जाता है। धनवंतरी जी को सनातन धर्म के अनुसार औषधि का देवता माना जाता है। आयुर्वेद के आचार्यो ने महामारी का मुख्य कारण जलवायु प्रदूषण को बताते है। जिससे अनाज , फल , सब्जियों और औषधियों वनस्पतियों के गुण कम हो जाते है। जल एवं वायु जीवन का प्रमुख आधार है इसलिए पर्यावरण में जलवायु के विकृत होने प...

सोशल मीडिया का प्रभाव

सोशल मीडिया का प्रभाव  सो शल नेटवर्किंग साइट पर बढ़ती सक्रियता रचनाशीलता पर डालती हैं प्रभाव वर्तमान समय में प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी सोशल साइट पर एक्टिव हैं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सोशल मीडिया का मंच आज अभिव्यक्ति का नया और कारगार माध्यम बन चुका है। लेकिन आज दूर बैठे रिश्तेदारों और दोस्तों से जोडऩे वाली यह सोशल नेटवर्किंग साइट्स युवाओं को तनाव, अशांति और क्रोध आदि जैसी मानसिक समस्याएं तो दे ही रही हैं। पर क्या आप जानते है कि इन साइट्स पर बढ़ती सक्रियता आपकी रचनाशीलता पर भी प्रभाव डाल रही हैं। फेसबुक और ट्विटर नए उभरते लेखकों को एक ऐसा मंच देता है जहां पर वो किसी भी विषय पर अपने विचार प्रकट कर सकते हैं। शायद इसी लिए ये साइट्स आज के युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं। तो चलिए यह जानने की कोशिश करते है कि किस प्रकार से सोशल साइट्स पर बढ़ती सक्रियता आपकी रचनाशीलता पर प्रभाव ड़ालती हैं। अतिसक्रियता कैसे प्रभावित करती हैं रचनाशीलता को सोशल साइट्स पर दिन-प्रतिदिन लोगों की बढ़ती सक्रियता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारी रचनाशीलता को प्रभावित करती ही हैं। लेक...

हिन्दी सिनेमा में स्त्री का बदलता स्वरूप

हिन्दी सिनेमा में स्त्री का बदलता स्वरूप कहते है कि सिनेमा समाज का दर्पण है, जिसमें समाज का प्रतिबिंब नजर आता हैं। समय कभी भी ठहरता नहीं है और जो समय के साथ कदम-से-कदम मिला कर बढ़े वही समाज के हित के लिए होता है। शुरू से ही सिनेमा केवल मनोरंजन का साधन मात्र ही नहीं रहा है अपितु यह समाज में फैली बुराइयों को समाज से ही अवगत कराता है। जिस प्रकार समाज मेें बदलाव आए है, ठीक उसी प्रकार सिनेमा में भी कई बदलाव आए है फिर चाहे वो भाषा, दर्शक वर्ग, पसंद-नापसंद, वेश-भूषा आदि हो। इसके साथ ही सबसे अहम बदलाव आया है, वह है सिनेमा में स्त्री का स्वरूप और इस बदले स्वरूप को दर्शकों का भी प्यार मिला हैं। नए समय के हिंदी सिनेमा में औरत की शख्सियत की वापसी हुई है। औरत की इस वापसी, उसके जुझारूपन को दर्शकों ने हाथोंहाथ लिया है। दर्शक अब अस्सी-नब्बे के दशक की शिफॉन साडिय़ों की फंतासी से बाहर निकल कर यथार्थ की खरोंचों को महसूस करना चाहता है। वह आईने में अपने को देखना चाहता है। अब की फिल्मों में औरत की स्वतंत्रता, इच्छाओं के साथ समाज की रुढिय़ों का खुल का विरोध भी देखने को मिलने लगा है। इस कड़ी ...

तेरे जाने से

तेरे जाने से    

विचार

कभी भी, किसी भी परिस्थिति में किसी को इतने अधिकार मत दो, कि वो आपका नसीब बदलने का अधिकार रखने लगें।

क्या सिर्फ नाम के लिए होते हैं रेजॉल्यूशन

 क्या सिर्फ नाम के लिए होते हैं रेजॉल्यूशन नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं  जिस   प्रकार किसी त्यौहार में बाजारों में साज-सजावट, मिठाईयों, कपड़ों और खिलौनों की धूम मची रहती है ठीक उसी प्रकार किसी व्यक्ति के जन्मदिन में और हर नए वर्ष में चारों तरफ खुशियों के अलावा जिस एक चीज की बहार रहती है। वह है लोगों के द्वारा ली जाने वाली रेजॉल्यूशन। जी हां रेजॉल्यूशन यानी किसी काम को करने का संकल्प लेना। नए साल पर नए-नए संकल्प लेना कोई आज की बात नहीं है, बल्कि आज से दो-तीन पीढ़ी पहले के लोग भी अपने नए साल की शुरूआत अच्छे कामों के करने का संकल्प लेकर ही शुरू करते थे। जैसे सुबह जल्दी उठ कर मॉनिंग वॉक के लिए जाना, साल के पहले दिन से ही पढ़ाई शुरू करने का, बड़ों का सम्मान करना आदि ना जाने कितने ही रेजॉल्यूशन से अपने दिन की शुरूआत करते है। क्या आपने कभी यह सोचा है कि हमारे द्वारा लिए गए यह संकल्प हम खुद कितने दिनों तक मानते हैं। एक दिन, एक हफ्ता या ज्यादा-से-ज्यादा एक महीना। हमारा रेजॉल्यूशन पर डटे न रहने का सबसे बड़ा कारण है हमारी मानसिक शक्ति। अगर हम यह चाहते है कि ह...

वक्त के साथ बदला भाईदूज

वक्त के साथ बदला भाईदूज भाई-बहन के प्यार का पर्व है भाईदूज का त्यौहार। इस दिन बहने अपने भाई का तिलक करके आरती उतारती है। भाई भी अपनी बहन को उपहार देता है। भाई चाहे अपनी बहन से पूरे  साल दूर रहा हो पर इस दिन वह अपने सारे काम को छोड़कर अपनी बहन के पास आता है , और भाईदूज का त्यौहार मनाता है। पर  वक्त के साथ बदल रहा है भाईदूज को मनाने का तरीका।  * कई भाई बहन ऐसे भी है जो भाईदूज के दिन भी साथ नहीं रहते। उन्हें अब डिजिटल मीडिया ने एक कर दिया है। भाई बहन के बीच की दूरी को स्मार्टफोन ने मिटा दी है।  *  पहले जब मम्मी मामा के घर जाती थी या बुआ पापा के घर भाईदूज के लिए आती थी तो वह मिठाई का डिब्बा साथ लाना कभी नहीं भूलती थी। पर समय के साथ मिठाई के इस डिब्बे में भी बदलाव आया है। आज की मॉर्डन बहने अपने भाईयों को मिठाई खिलाने से ज्यादा बेहतर उन्हें ड्राय-furit और चॉकलेट्स खिलाना पसंद करती है। इससे न केवल मिलावटी मिठाई के नुकसान से बचा जा सकता है , बल्कि यह आजकल के फैशन के अनुरूप भी है।  *  पापा अपनी बहन को भाईदूज के अवसर पर भेंट स्वरूप अपना प्यार देत...

भारत की विरासत : आयुर्वेद पद्धति

भारत की विरासत : आयुर्वेद पद्धति             भारत की विरासत : आयुर्वेद पद्धति  भारत की प्राचीन विरासत आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति देश का गौरव का प्रतीक  मानी  जाती है। जिन बीमारियों का इलाज एलोपेथी में भी संभव नहीं है , उसका इलाज आयुर्वेद में संभव है। आयुर्वेद ने अपनी खूबियों के चलते पूरे विश्व में अपना लोहा मनवा लिया है। जब भारत की धरोहर आयुर्वेद की शक्ति और इसके लाभ के बारे में पूरा विश्व मान चुका है तब भारत देश की नींद खुली कि यह तो भारतीय धरोहर है और इसके लाभ को लेने में ज्यादा देरी नहीं करनी चाहिए। देर से ही सही लेकिन देश ने आयुर्वेद की ताकत को जाना और इसके विकास के लिए कई ठोस कदम भी उठाएं  है। धन्वंतरि जयंती या धनतेरस  के अवसर पर राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मानाने की पहल की गई है। इस पहल से लगता है कि सचमुच अच्छे दिन आ गए है जिसका वादा मोदी सरकार ने किया था। धन्वंतरि को हिन्दु धर्म के अनुसार दवाई का देवता माना जाता है। पुराणो में भी इनको आयुर्वेद का भगवान माना गया है। समय के साथ सोच...