Skip to main content

तेरे जाने से

तेरे जाने से 

 

Comments

Popular posts from this blog

हिन्दी सिनेमा में स्त्री का बदलता स्वरूप

हिन्दी सिनेमा में स्त्री का बदलता स्वरूप कहते है कि सिनेमा समाज का दर्पण है, जिसमें समाज का प्रतिबिंब नजर आता हैं। समय कभी भी ठहरता नहीं है और जो समय के साथ कदम-से-कदम मिला कर बढ़े वही समाज के हित के लिए होता है। शुरू से ही सिनेमा केवल मनोरंजन का साधन मात्र ही नहीं रहा है अपितु यह समाज में फैली बुराइयों को समाज से ही अवगत कराता है। जिस प्रकार समाज मेें बदलाव आए है, ठीक उसी प्रकार सिनेमा में भी कई बदलाव आए है फिर चाहे वो भाषा, दर्शक वर्ग, पसंद-नापसंद, वेश-भूषा आदि हो। इसके साथ ही सबसे अहम बदलाव आया है, वह है सिनेमा में स्त्री का स्वरूप और इस बदले स्वरूप को दर्शकों का भी प्यार मिला हैं। नए समय के हिंदी सिनेमा में औरत की शख्सियत की वापसी हुई है। औरत की इस वापसी, उसके जुझारूपन को दर्शकों ने हाथोंहाथ लिया है। दर्शक अब अस्सी-नब्बे के दशक की शिफॉन साडिय़ों की फंतासी से बाहर निकल कर यथार्थ की खरोंचों को महसूस करना चाहता है। वह आईने में अपने को देखना चाहता है। अब की फिल्मों में औरत की स्वतंत्रता, इच्छाओं के साथ समाज की रुढिय़ों का खुल का विरोध भी देखने को मिलने लगा है। इस कड़ी ...

निर्जला एकादशी का महत्व

facebook, twitter, निर्जला एकादशी का महत्व हिंदु धर्म के अनुसार एकादशी के व्रत का विशेष महत्व होता है। साल में 24 एकादशी आती है, और सभी का अपना अलग-अलग महत्व होता है।  कुछ एकादशी के व्रत ऐसे होते है, जिनका खास महत्व होता है और इन्हीं में से एक है निर्जला एकादशी का व्रत। हिंदु कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है। निर्जला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है, और व्रत रखा जाता है। इस साल निर्जला एकादशी 10 जून सुबह 7:25 बजे से प्रारंभ होगी और अगले दिन यानी 11 जून सुबह 5:45 बजे समापना होगा। ये भी पढ़ें -  अक्षय तृतीया में क्या न करें, जिससे हो मां लक्ष्मी की कृपा आखिर क्यों हैं निर्जला एकादशी व्रत का विशेष महत्व हिन्दु मान्यताओं के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत सबसे श्रेष्ठ है और ये सबसे कठिन व्रतों में से एक है। इस व्रत में अन्न और जल का त्याग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति यह व्रत विधिपूर्वक करता है, उसे जीवन में हमेशा सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। ये भी ...

सावन मास का महत्व

सावन मास का महत्व सावन मास भगवान शिव को समर्पित हैं। इस पवित्र महीने में भोले बाबा के भक्त उन्हे प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा अर्चना करते है। सावन मास को सर्वोत्त्म मास भी कहते है। सावन सोमवार व्रत का सर्वाधिक महत्व है। श्रावस मास भगवान भोलेनाथ को सबसे प्रिय है। इस माह में सोमवार का व्रत और सावन स्नान की परंपरा है। श्रावण मास में बेलपत्र से भगवान भोलेनाथ की पूजा करना और उन्हें जल चढ़ाना अति फलदायी माना गया है। जल अभिशेष का सावन मास में विशेष   महत्व   जब   समुद्र मंथन आरम्भ हुआ और भगवान कच्छप के एक लाख   योजन   चौड़ी पीठ पर मन्दराचल पर्वत घूमने लगा। तब समुद्र मंथन से सबसे पहले हलाहल विष निकला। उस विष की ज्वाला से सभी देवता तथा दैत्य जलने लगे और उनकी कान्ति फीकी पड़ने लगी। इस पर सभी ने मिलकर भगवान शंकर की प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना पर   महादेव   जी उस विष को हथेली पर रख कर उसे पी गये किन्तु उसे कण्ठ से नीचे नहीं उतरने दिया। उस   कालकूट   विष के प्रभाव से शिवजी का कण्ठ नीला पड़ गया। इसीलिये महादेव जी को   नीलकण्ठ   कहते हैं। उ...