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अमरनाथ शिवलिंग पर ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव
क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग का असर न केवल यूरोप तक सीमित है, बल्कि अब इसका असर भारत में अमरनाथ गुफा तक भी पहुंच रहा है। जिसके कारण अमरनाथ का शिवलिंग वक्त से पहले पिघल रहा है। हर साल करीब एक महीने के लिए अमरनाथ के शिवलिंग के दर्शन होते थे। वहीं अब पिछले कुछ वर्षो से शिवलिंग बहुत जल्दी पिघलने लगा है, जिससे बाबा बर्फानी के दर्शन वाले दिन घटकर सिर्फ 20 दिनों में सिमट रहा है।
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अमरनाथ यात्रियों के लिए बर्फ के शिवलिंग के दर्शन और दुलर्भ होता जा रहा है। क्योंकि जो शिवलिंग पहले एक महीने तक नहीं पिघलता था, अब वह यात्रा शुरू होने के मात्र 3 हफ्ते के अंदर ही पिघलने लगा है।
साल-दर-साल कम होता गया शिवलिंग का आकार
आपको जानकर हैरानी होगी कि जो शिवलिंंग 90 के दशक में 20 फीट तक ऊंचा बनता था। लेकिन 2012 में इसकी ऊंचाई 18 फीट तक पहुंच गई। तो वहीं 2015 में अमरनाथ धाम में 18 फीट का शिवलिंग बना। 2016 तक आते-आते शिवलिंग की ऊंचाई 10 फीट तक सिमट गई। उसके बाद से अमरनाथ में औसतन 10 फीट का ही शिवलिंग बन पा रहा है।
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शिवलिंग पिघलने का एकमात्र कारण ग्लोबल वार्मिंग?
लेकिन क्या शिवलिंग का बेवक्त पिघलने का एकमात्र कारण ग्लोबल वार्मिंग ही है? बिल्कुल नहीं, तीर्थ स्थलों में मूलभूत सुविधाओं का काफी विस्तार हुआ है, जिसके चलते तीर्थयात्रियों की संख्या में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। तीर्थयात्रियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सड़कों का निर्माण बड़े पैमाने पर किया गया ताकि आवागमन सुलभ होने के साथ ही दुर्घटनाओं को कम किया जा सके। लेकिन इस कारण प्राकृति के सुख-चैन में भी बेवजह दखलअंदाजी बढ़ी है। यही वजह है कि कभी-कभी आने वाली प्राकृतिक आपदाएं जल्दी-जल्दी आने लगी है।
अभी हाल ही में अमरनाथ की पवित्र यात्रा में बादल फटने की घटना एक गंभीर चेतावनी है। यह चेतावनी प्रकृति बार-बार हमें दे रही है। वास्तव में प्रकृति की शांति लगातार मानव द्वारा भंग की जा रही है। जिसका असर न केवल प्राकृतिक आपदाओं के जरिए देखने को मिलता है, बल्कि क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग का भी जिम्मेदार है।
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