भारतीय आयुर्विज्ञान काढ़े तक ही सीमित है?
आयुर्वेद शब्द (आयु: + वेद) से मिलकर बना है
जिसका अर्थ है जीवन से संबंधित ज्ञान। आयुर्विज्ञान मानव शरीर को निरोग रखने,
रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने तथा आयु बढ़ाने वाला है। आयुर्वेद
के आदि आचार्य अश्विनी कुमार माने जाते है। धनवंतरी जयंती या धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद
दिवस मनाया जाता है। धनवंतरी जी को सनातन धर्म के अनुसार औषधि का देवता माना जाता है।
आयुर्वेद के आचार्यो ने महामारी का मुख्य कारण जलवायु प्रदूषण को बताते है।
जिससे अनाज,फल,सब्जियों और
औषधियों वनस्पतियों के गुण कम हो जाते है। जल एवं वायु जीवन का प्रमुख आधार है
इसलिए पर्यावरण में जलवायु के विकृत होने पर मानव शरीर का कफ, वात तत्व कमजोर हो जाता है। यही कारण है कि आम जनता के साथ
समृद्ध राजपुरूष भी महामारी का शिकार बनने लगे है।
भारतीय संस्कृति के सभी पर्वो पर हवन,सफाई ऋतु अनुकूल
पकवानों के साथ कुल,ग्राम देवताओं के उपासना की परंपरा रही है।
परंतु आज सांस्कृतिक संक्रमण काल में पश्चात्य शैली के कारण परंपराओं को पिछड़ापन
का प्रतीक और ढोंग समझकर हम त्याग चुके है। कमजोर इम्युनिटी का एक कारण ये भी
सिद्ध हो रहा है। इन्ही कारणों से अति विकसित संसाधनों के बावजूद कोरोना काल में
हम असहाय बने हुए है।
आयुर्वेद में रसायन उन औषधियों को कहा जाता है जिनके सेवन से मेधा और शरीर
आराेग्य होता है। इसे आम बोलचाल की भाषा में एंटीऑक्सीडेंट एवं इम्युनिटी बूस्टर
कहा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार
इम्युनिटी दो प्रकार की होती है। सत्वबल एवं ओजबल। महामारी काल मे चारो तरफ
से नेगेटिव सूचनाओं के कारण व्यक्ति का मनोबल कमजोर हो जाता है।
मनोबल कमजोर होने की वजह से लोग डिप्रेशन में चले जाते है। सत्वबल अर्थात
मनोबल बढ़ाने के लिए ही उपासना,पूजा,ध्यान आदि के लिए कहा जाता है। इम्युनिटी
के दूसरे पक्ष् को ओज कहा जाता है। देह,मन और आत्मा के
संयुक्त शक्ति को ओजबल कहा गया है।
आयुर्वेद में आचार्य नागार्जुन को महामारी नियंत्रण व चिकित्सा का विशेषज्ञ
माना जाता है। कहा जाता है कि एक बार मगध प्रांत में महामारी आई और वर्षा न होने
के कारण फसलें,जड़ी बूटियां भी सूख गई थी। इस संकट से निपटने
के लिए मगध नरेश ने नालंदा विश्वविद्यालय में आचार्यों का सम्मेलन आयोजित किया।
अपनी बारी आने पर नागार्जुन ने कहा कि वनस्पतियां नष्ट हो चुकी है इसलिए
धातुओं-खनिजों की औषधियों से ही महामारी को नियंत्रित किया जा सकता है। नागार्जुन द्वारा
दिए गए सूत्र,पारा एवं स्वर्ण आदि धातुओं के भस्म से बनी औषधियों से महामारी
पर नियंत्रण संभव हो सका।
आचार्य नागार्जुन के गहन शोध से बनाई गई रसायन औषधियों का प्रयोग आवश्यक है। परंतु
खेद है कि आज हम अपने देश के आचार्यो और विद्वानों की परंपराओं की उपेक्षा कर वैश्विक
प्रोटोकॉल पर अधिक विश्वास कर रहे है।
दुर्योग से पाश्चात्य जगत के अप्रमाणिक उपायों और दवाओं की असफलता के बावजूद उनका लगातार प्रयोग किया जा रहा है, वहीं हजारों वर्षों की अनूभूत आयुर्वेद की औषधियों पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया जा रहा है और अप्रमाणिक बताकर भारतीय आयुर्विज्ञान को काढ़े तक सीमित कर दिया गया है।
काली मिर्च औषधीय गुणों से भरपूर है, इसमें रोगाणुरोधी गुण मौजूद होते है जो सर्दी-खांसी का उपचार करते है। तुलसी में एंटी-बैक्टीरियल गुण मौजूद होते है जो सभी प्रकार के इंफेक्शन से शरीर की रक्षा करती है। काली मिर्च और तुलसी का काढ़ा ना सिर्फ आपकी इम्यूनिटी बढ़ाएगा बल्कि सर्दी-जुकाम से राहत भी दिलाएगा। इस काढ़े को अपने घर में असानी से बना सकते है।
रेसिपी
- 5 से 6 तुलसी के पत्ते
- आधा चम्मच इलायची पाउडर
- काली मिर्च पाउडर, अदरक और मुन्नका
- इस तरह बनाएं काढ़ा
एक पैन में दो ग्लास पानी डाले और इसमें इलायची पाउडर, काली मिर्च,
अदरक और मुन्नका डालकर 15 मिनट तक उबाले। उबालने
के बाद इसे ठंडा होने के लिए रख दें। फिर इसे छान कर पी लें।
कोरोना से लड़ना है तो आपको अपनी इम्यून पावर मजबूत करनी होगी। इस काढ़े के इस्तेमाल
से आपकी रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी, साथ ही आपका पाचन दुरूस्त रहेगा।
आखिर में एक छोटा सा सवाल – इम्यूनिटी बढ़ाने वाले बोर्नवीटा, बूस्ट, हॉरलिक्स और कॉमप्लैन जैसे पेय पदार्थ कहां चले
गए?
क्यों टिकी है तुलसी, गिलोय, काढ़ा व च्यवनप्राश
पर जीवन की आस?
कितनी चिड़िया उड़े आकाश, चारा है धरती के पास
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