Skip to main content

Posts

सोशल मीडिया का प्रभाव

सोशल मीडिया का प्रभाव  सो शल नेटवर्किंग साइट पर बढ़ती सक्रियता रचनाशीलता पर डालती हैं प्रभाव वर्तमान समय में प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी सोशल साइट पर एक्टिव हैं। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि सोशल मीडिया का मंच आज अभिव्यक्ति का नया और कारगार माध्यम बन चुका है। लेकिन आज दूर बैठे रिश्तेदारों और दोस्तों से जोडऩे वाली यह सोशल नेटवर्किंग साइट्स युवाओं को तनाव, अशांति और क्रोध आदि जैसी मानसिक समस्याएं तो दे ही रही हैं। पर क्या आप जानते है कि इन साइट्स पर बढ़ती सक्रियता आपकी रचनाशीलता पर भी प्रभाव डाल रही हैं। फेसबुक और ट्विटर नए उभरते लेखकों को एक ऐसा मंच देता है जहां पर वो किसी भी विषय पर अपने विचार प्रकट कर सकते हैं। शायद इसी लिए ये साइट्स आज के युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं। तो चलिए यह जानने की कोशिश करते है कि किस प्रकार से सोशल साइट्स पर बढ़ती सक्रियता आपकी रचनाशीलता पर प्रभाव ड़ालती हैं। अतिसक्रियता कैसे प्रभावित करती हैं रचनाशीलता को सोशल साइट्स पर दिन-प्रतिदिन लोगों की बढ़ती सक्रियता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमारी रचनाशीलता को प्रभावित करती ही हैं। लेक...

हिन्दी सिनेमा में स्त्री का बदलता स्वरूप

हिन्दी सिनेमा में स्त्री का बदलता स्वरूप कहते है कि सिनेमा समाज का दर्पण है, जिसमें समाज का प्रतिबिंब नजर आता हैं। समय कभी भी ठहरता नहीं है और जो समय के साथ कदम-से-कदम मिला कर बढ़े वही समाज के हित के लिए होता है। शुरू से ही सिनेमा केवल मनोरंजन का साधन मात्र ही नहीं रहा है अपितु यह समाज में फैली बुराइयों को समाज से ही अवगत कराता है। जिस प्रकार समाज मेें बदलाव आए है, ठीक उसी प्रकार सिनेमा में भी कई बदलाव आए है फिर चाहे वो भाषा, दर्शक वर्ग, पसंद-नापसंद, वेश-भूषा आदि हो। इसके साथ ही सबसे अहम बदलाव आया है, वह है सिनेमा में स्त्री का स्वरूप और इस बदले स्वरूप को दर्शकों का भी प्यार मिला हैं। नए समय के हिंदी सिनेमा में औरत की शख्सियत की वापसी हुई है। औरत की इस वापसी, उसके जुझारूपन को दर्शकों ने हाथोंहाथ लिया है। दर्शक अब अस्सी-नब्बे के दशक की शिफॉन साडिय़ों की फंतासी से बाहर निकल कर यथार्थ की खरोंचों को महसूस करना चाहता है। वह आईने में अपने को देखना चाहता है। अब की फिल्मों में औरत की स्वतंत्रता, इच्छाओं के साथ समाज की रुढिय़ों का खुल का विरोध भी देखने को मिलने लगा है। इस कड़ी ...

तेरे जाने से

तेरे जाने से    

विचार

कभी भी, किसी भी परिस्थिति में किसी को इतने अधिकार मत दो, कि वो आपका नसीब बदलने का अधिकार रखने लगें।

क्या सिर्फ नाम के लिए होते हैं रेजॉल्यूशन

 क्या सिर्फ नाम के लिए होते हैं रेजॉल्यूशन नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं  जिस   प्रकार किसी त्यौहार में बाजारों में साज-सजावट, मिठाईयों, कपड़ों और खिलौनों की धूम मची रहती है ठीक उसी प्रकार किसी व्यक्ति के जन्मदिन में और हर नए वर्ष में चारों तरफ खुशियों के अलावा जिस एक चीज की बहार रहती है। वह है लोगों के द्वारा ली जाने वाली रेजॉल्यूशन। जी हां रेजॉल्यूशन यानी किसी काम को करने का संकल्प लेना। नए साल पर नए-नए संकल्प लेना कोई आज की बात नहीं है, बल्कि आज से दो-तीन पीढ़ी पहले के लोग भी अपने नए साल की शुरूआत अच्छे कामों के करने का संकल्प लेकर ही शुरू करते थे। जैसे सुबह जल्दी उठ कर मॉनिंग वॉक के लिए जाना, साल के पहले दिन से ही पढ़ाई शुरू करने का, बड़ों का सम्मान करना आदि ना जाने कितने ही रेजॉल्यूशन से अपने दिन की शुरूआत करते है। क्या आपने कभी यह सोचा है कि हमारे द्वारा लिए गए यह संकल्प हम खुद कितने दिनों तक मानते हैं। एक दिन, एक हफ्ता या ज्यादा-से-ज्यादा एक महीना। हमारा रेजॉल्यूशन पर डटे न रहने का सबसे बड़ा कारण है हमारी मानसिक शक्ति। अगर हम यह चाहते है कि ह...

वक्त के साथ बदला भाईदूज

वक्त के साथ बदला भाईदूज भाई-बहन के प्यार का पर्व है भाईदूज का त्यौहार। इस दिन बहने अपने भाई का तिलक करके आरती उतारती है। भाई भी अपनी बहन को उपहार देता है। भाई चाहे अपनी बहन से पूरे  साल दूर रहा हो पर इस दिन वह अपने सारे काम को छोड़कर अपनी बहन के पास आता है , और भाईदूज का त्यौहार मनाता है। पर  वक्त के साथ बदल रहा है भाईदूज को मनाने का तरीका।  * कई भाई बहन ऐसे भी है जो भाईदूज के दिन भी साथ नहीं रहते। उन्हें अब डिजिटल मीडिया ने एक कर दिया है। भाई बहन के बीच की दूरी को स्मार्टफोन ने मिटा दी है।  *  पहले जब मम्मी मामा के घर जाती थी या बुआ पापा के घर भाईदूज के लिए आती थी तो वह मिठाई का डिब्बा साथ लाना कभी नहीं भूलती थी। पर समय के साथ मिठाई के इस डिब्बे में भी बदलाव आया है। आज की मॉर्डन बहने अपने भाईयों को मिठाई खिलाने से ज्यादा बेहतर उन्हें ड्राय-furit और चॉकलेट्स खिलाना पसंद करती है। इससे न केवल मिलावटी मिठाई के नुकसान से बचा जा सकता है , बल्कि यह आजकल के फैशन के अनुरूप भी है।  *  पापा अपनी बहन को भाईदूज के अवसर पर भेंट स्वरूप अपना प्यार देत...

भारत की विरासत : आयुर्वेद पद्धति

भारत की विरासत : आयुर्वेद पद्धति             भारत की विरासत : आयुर्वेद पद्धति  भारत की प्राचीन विरासत आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति देश का गौरव का प्रतीक  मानी  जाती है। जिन बीमारियों का इलाज एलोपेथी में भी संभव नहीं है , उसका इलाज आयुर्वेद में संभव है। आयुर्वेद ने अपनी खूबियों के चलते पूरे विश्व में अपना लोहा मनवा लिया है। जब भारत की धरोहर आयुर्वेद की शक्ति और इसके लाभ के बारे में पूरा विश्व मान चुका है तब भारत देश की नींद खुली कि यह तो भारतीय धरोहर है और इसके लाभ को लेने में ज्यादा देरी नहीं करनी चाहिए। देर से ही सही लेकिन देश ने आयुर्वेद की ताकत को जाना और इसके विकास के लिए कई ठोस कदम भी उठाएं  है। धन्वंतरि जयंती या धनतेरस  के अवसर पर राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मानाने की पहल की गई है। इस पहल से लगता है कि सचमुच अच्छे दिन आ गए है जिसका वादा मोदी सरकार ने किया था। धन्वंतरि को हिन्दु धर्म के अनुसार दवाई का देवता माना जाता है। पुराणो में भी इनको आयुर्वेद का भगवान माना गया है। समय के साथ सोच...