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कोरोना से खतरनाक लम्पी
सनातन धर्म में गाय का प्रमुख स्थान है। गाय में सक्षात श्री हरि विष्णु का वास हाेता है। इसके अलावा सभी देवी-देवता का निवास होता है। भारत देश जहां स्चयं श्री कृष्ण गाय की सेवा करते थे उस देश में राेज हजारों गायों का मौत के मुंह में जाने पर सरकारों की चुप्पी समझ से परे है।
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एक किसान के लिए पशु का क्या महत्व होता है वह इस बात से समझा जा सकता है कि जब कभी शाम को वक्त पर घर न पहुंचे तो मन में अनहोनी का आभास होने लगता है। ऐसे में लाखों गायों की मौत पर सब मौन क्यों? अकेले राजस्थान में 75 हजार गाय और बछड़े मौत के मुंह में समा चुके है। लम्पी से होने वाली मौत के मामले में गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, हरियाणा और बाकी राज्य भी पीछे नहीं है जहां लम्पी गायो को निगल रही है।
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गायों की मौन-चीत्कार
लम्पी वायरस का कोई इलाज नहीं है और न ही कोई टीका है। हजारों गायें रोज धरती मां की गोद में समा रही है। मनुष्य तो फिर भी चीख-पुकार कर सकता है, या कहीं और जाकर अपना इलाज करवा सकता है। लेकिन इन गायों की मौन चीत्कार को कौन सुनेगा। गायों के मरने के बाद बस एक ही इलाज बचता है कि एक बड़ा और लम्बा ग खोदा जाए और मरी गायों को उसमें गाड़ दिया जाए।
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सरकारों के पास इन सब के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं। कोई उद्घाटन करने में बिजी है, कोई अपनी सरकार बचाने में बिजी है कोई अपनी सरकार बचाने में बिजी है कोई प्रधानमंत्री बनने का सपना बुनने में लगा हुआ है तो कोई अन्य राज्यों में अपनी पार्टी का विस्तार करने में व्यस्त है।
गाय के नाम पर हर साल करोड़ों के टैक्स वसूल करती है, यह सरकारें लेकिन यह पैसा कहां जाता है, किसी को नहीं पता। यह टैक्स रजिस्ट्री पर, शाराब पर, मैरिज गार्डन की बुकिंग पर, बड़े सौदो, वाहन खरीदी आदि पर भी गो सेस जनता से वसूलती है सरकार।
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लेकिन गौशलाओं को अनुदान के नाम पर सिर्फ ठेंगा ही दिखाया जाता है। परंतु ऐसा भी नहीं है कि गौशलाओं को सरकार की तरफ से कोई अनुदान नहीं मिलता। ज्यादा से ज्यादा अनुदान उन्हीं गौशलाओं को मिलता है, जो या तो किसी राजनीति से जुड़े व्यक्ति की है या फिर उस गौशाला को जो किसी राजनीतिक पार्टी का घोर समर्थक हो।
पिछले तीन सालों में अकेले राजस्थान में शराब पर 1205 करोड़ रुपये गो सेस के नाम पर सरकार ने कमाये है। इन पैसों का हिसाब किसी के पास नहीं है और न कोई जानना चाहता है और सरकार तो बताने से रही।
पहला और आखिरी इलाज
कोरोना से भी खतरनाक है ये लम्पी वायरस। गांवों में लाेग काेरोना से ज्यादा लम्पी से डर रहे है। इस वायरस के संपर्क में आने पर गाएं सिकुड़ जाती है और शरीर पर फफोले उभर आते है। गाय खाना-पीना बंद कर देती है और दो-चार दिन बाद अपने प्राण त्याग देती है। कहीं सड़क पर तो कहीं घर से खेत के रास्ते पर गाय अपना दम तोड़ देती है। इसके बाद इन गायों को बड़े से गड्ढे में गाड़ दिया जाता है। ऐसा लगता है यही पहला और आखिरी इलाज है।
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इन मौतों के कारण गांव श्मशान से लगने लगे है। जिनके गायों की मौत हुई उनके चेहरे ऐसे पीले पड़ गए है जैसे पीलिया हो गया हो। इन भयानक और खौफनाक वक्त पर कोई यह कैसे कह सकता है कि ऑल इज वेल। ऐसी लम्पट व्यवस्था से कोई उम्मीद करना बेमानी होगी।
गौ माता धरती की धारक तत्व है इन पर संकट संपूर्ण विश्व के लिए खतरे का संकेत है। यही लंपी कुछ दिनों बाद मानव शरीर में होगी और चारों तरफ चीख-पुकार, हा-हाकार होगी। आने वाली असली महामारी के लिए तैयार हो जाओ।
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